他们在我的记忆中仍未褪色,啊,玫瑰一般的斟酒人
那些日子因爱人的面容反射而熠熠生辉
那一刻的相遇,那一瞬间开得就像一朵花
那一刻的希望,那一刻的悸动就像一颗心
一个希望,它说:“看哪!心之痛苦的命运苏醒了。”
“看哪!爱的焦渴之夜终于结束了
上面写着:“在那里,无眠的痛苦之星终于变暗了。”
现在焦躁双眼的命运将会照亮
从这屋顶将升起你美丽的太阳
从那个角落里会射出一缕指甲花的颜色
你那迅疾的步态将会从这扇门里穿过
在这条小路上,你长袍的晚霞将绽放
我又看见那灼热的离别之日
当哭泣也在内心和生活的烦恼中被遗忘
每天晚上黑暗几乎要饮尽我的心灵
每一束清晨的火焰都会像箭一样刺穿胸膛
孤独中,有多少种方式记得你
虚弱的心寻求了多少避难之处
有时,我用和风之手触摸双眼
有时,我紧紧抱着月亮的脖颈
我也以同样的方式爱着挚爱的国家
我的心也以同种方式渴求她的热情
同样地,我的激情也在寻找旅途终点的宁静
有时在脸颊的弯弯上,有时在卷发的蜷曲处
也献给我的心上人
有时笑着大叫,有时哭着召唤
我满足了她的每一个词语的愿望
减轻每一种痛苦,点缀每一种悲伤
我从来没有拒绝过任何激情
丧钟从来在无人作陪中响起
生活幸福,肉体舒适,衣着合度
所有这些智者的忠告都被遗忘了
这条路上,每个人都会遇见,我也会遇见什么
有时孤独地躲在监狱墙后,有时在公众前蒙羞
从他们讲坛的角落里传来了雷鸣般的声音
有权势的人经常在他们的宫廷上活跃起来
没有人能幸免陌生人的指责
密友也不会放过指责的机会
但我的心既不因此爱而羞愧,也不因彼爱而羞愧
这颗心有每一个污点,除了后悔的污点
《两种爱》Faiz Ahmed Faiz,巴基斯坦左翼诗人
دو عشق
تازہ ہےں ابہی یاد میں اے ساقی گلفام
وہ عکس رخ یار سے لحکے ہوے ایام
وہ پہول سی کہلتی ہوی دیدار کی ساعت
وہ دل سا دہڑکتا ہوا امید کا ہنگام
امید کہ لو جاگا غم دل کا نصیبہ
لو شوق کی ترسی ہوی شب ہو گی آخر
لو ڈوب گے درد کے بےخواب ستارے
اب چمکےگا بے صبر نگاہوں کا مقددر
اس بام سے نکلےگا ترے حسن کا خورشید
اس کنج سے پہوٹےگی کرن رنگ حنا کی
اس در سے بحےگا تری رفتار کا سیماب
اس راہ پہ پہولےگی شفق تری قبا کی
پہر دیکہے ہیں وہ ہجر کے تپتے ہوے دن بہی
جب فکر دل و جاں میں فغاں بہول گی ہے
ہر شب وہ سیہ بوجہ کہ دل بیٹہ گیا ہے
ہر صبح کی لو تیر سی سینے میں لگی ہے
تنہای میں کیا کیا نہ تجہے یاد کیا ہے
کیا کیا نہ دل زار نے ڈہونڑی ہیں پناہیں
آنکہوں سے لگایا ہے کبہی دست صبا کو
ڈالی ہیں کبہی گردن مہتاب میں باہیں
چاہا ہے اسی رنگ میں لیلا ے وطن کو
تڑپا ہے اسی طور سے دل اس کی لگن میں
ڈہونڈی ہے یوں ہی شوق نے آسائش منزل
رخسار کے خم میں کبہی کاکل کی شکن میں
اس جان جہاں کو بہی یوں ہی قلب و نظر نے
ہنس ہنس کے صدا دی کبہی رو رو کے پکارا
پورے کیے سب حرف تمننا کے تقاضے
ہر درد کو اجیالا ہر اک غم کو سنوارا
واپس نہیں پہیرا کوی فرمان جنوں کا
تنہا نہیں لوٹی کبہی آواز جرس کی
خیریت جاں راحت تن صحت داماں
سب بہول گییں مصلہتیں اہل ہوس کی
اس راہ میں جو سب پہ گزرتی ہے وہ گزری
تنہا پس زنداں کبہی رسوا سر بازار
گرجے ہےں بہت شیخ سر گوشہ منبر
کڑکے ہیں بہت اہل حکم بر سر دربار
چہوڑا نہیں غیروں نےکوی ناوک دشنام
چہوٹی نہیں اپنوں سے کوی طرز ملامت
اس عشق نہ اس عشق پہ نادم ہے مگر دل
ہر داغ ہے اس دل میں بہجز داغ ندامت
दो इश्क़
ताज़ा हैं अभी याद में, ऐ साकी-ए-गुलफाम
वो अक्स-ए-रुख-ए-यार से लहके हुए अय्याम
वो फूल सी खिलती हुई दीदार की सा’अत
वो दिल सा धड़कता हुआ उम्मीद का हंगाम
उम्मीद कि लो जागा ग़म-ए-दिल का नसीबा
लो शौक़ की तरसी हुई शब् हो गई आखिर
लो डूब गए दर्द के बे-ख्वाब सितारे
अब चमकेगा बे-सब्र निगाहों का मुक़द्दर
इस बाम से निकलेगा तेरे हुस्न का खुर्शीद
उस कुंज से फूटेगी किरन रंग-ए-हिना की
इस दर से बहेगा तेरी रफ़्तार का सीमाब
उस राह पे फूलेगी शफ़क़ तेरी क़बा की
फिर देखें हैं वो हिज्र के तपते हुए दिन भी
जब फ़िक्र-ए-दिल-ओ-जान में फुगाँ भूल गई है
हर शब् वो सिया बोझ कि दिल बैठ गया है
हर सुब्ह की लौ तीर सी सीने में लगी है
तन्हाई में क्या क्या न तुझे याद किया है
क्या क्या न दिल-ए-ज़ार ने ढूंडी हैं पनाहें
आँखों से लगाया है कभी दस्त-ए-सबा को
डाली हैं कभी गरदन-ए-महताब में बाहें
चाहा हैं इसी रंग में लैला-ए-वतन को
तड़पा है इसी तौर से दिल उसकी लगन में
ढूंडी है यूं ही शौक़ ने आसा’इश-ए-मंज़िल
रुखसार के ख़म में, कभी काकुल की शिकन में
उस जान-ए-जहां को भी यूंही क़ल्ब-ओ-नज़र ने
हंस हंस के सदा दी, कभी रो रो के पुकारा
पूरे किये सब हर्फ़-ए-तमन्ना के तकाज़े
हर दर्द को उज्याला, हर एक ग़म को संवारा
वापस नहीं फेरा कोई फरमान जुनूं का
तनहा नहीं लौटी कभी आवाज़ जरस की
खैरियत-ए-जान, राहत-ए-तन, सेहत-ए-दामन
सब भूल गयीं मसलहतें अहल-ए-हवस की
इस राह में जो सब पे गुज़रती है वो गुज़री
तनहा पस-ए-ज़िन्दां, कभी रुसवा सर-ए-बाज़ार
गरजे हैं बहुत शेख सर-ए-गोशा-ए-मिन्बर
कड़के हैं बहुत अहल-ए-हुक्म बर सर-ए-दरबार
छोड़ा नहीं ग़ैरों ने कोई नावक-ए-दुशनाम
छूटी नहीं अपनों से कोई तर्ज़-ए-मलामत
इस इश्क़ न उस इश्क़ पे नादिम है मगर दिल
हर दाग़ है इस दिल में ब-जुज़ दाग़-ए-नदामत
精彩点评:
1,“那些日子因爱人的面容反射而熠熠生辉”学到了👍
2,不会褪色